छत्तीसगढ़ बना गौ-वंश तस्करी का हब
छत्तीसगढ़ बना गौ-वंश तस्करी का हब

‘धान का कटोरा’ के नाम से प्रसिद्ध छत्तीसगढ़ अब देश में गौ-वंश तस्करी का हब बनने लगा है। यहां से उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा और तेलंगाना के गिरोह गौ-वंश तस्करी कर रहे हैं। हर दिन एक गाड़ी गौ-वंश से भरी रवाना होती है। आंकड़ों की बात करें तो 5 साल में पशु तस्करी के 646 मामले दर्ज किए गए।
इस तरह से गिरोह कर रहा काम
गौ-वंश तस्कर ने नेटवर्क बना रखा है। इसे चार पार्ट में डिवाइड किया गया है। पुलिस अफसरों के मुताबिक, इनमें अपराधियों सहित छोटे-बड़े कारोबारी, एजेंट और ट्रक मालिक जुड़े हुए हैं। गिरोह में शामिल सभी सदस्यों का काम बंटा है। ज्यादातर मामलों में एक नेटवर्क के सदस्य दूसरे को नहीं जानते हैं।
‘पट्टी’ से करते है गौ-वंश का सौदा
गौ-वंश खरीदने के लिए आरोपी पट्टी (किलोग्राम) के भाव से सौदा करते है। ये सौदा ग्रामीणों और चरवाहों से किया जाता है। 100 किलो पर 3 हजार और 200 किलो पर 4 हजार रुपए का भाव होता है। यह भाव शुरुआती स्तर पर रहता है। जैसे-जैसे सौदा होता जाता है, उनकी कीमत भी बढ़ती जाती है।
इस रूट का तस्कर करते है इस्तेमाल
गौ-वंश को कंटेनर और ट्रक में डालकर पूरी तरह से पैक कर दिया जाता है। दो सदस्य ट्रक के अंदर रहते हैं। तेज रफ्तार गाड़ी में यदि गौ-वंश बाहर गिर जाता है तो दोनों चलती गाड़ी से ही उन्हें उठा लेते हैं। इनके अलावा गाड़ी में ड्राइवर और खलासी रहता है। गौ-वंश को नागपुर भेजने के लिए तस्कर राजनांदगांव के रास्ते जाते हैं। इसी तरह हैदराबाद भेजने के लिए जगदलपुर, विशाखापट्टनम भेजने के लिए बागबहारा और कोलकाता भेजने के लिए सरायपाली रूट का इस्तेमाल किया जाता है। दिन में अंदरुनी सड़कों का इस्तेमाल कर गाड़ियों को बॉर्डर या उससे कुछ दूर लाया जाता है। रात को बॉर्डर से क्रॉस करवा देते हैं।
चोरी और किराए की गाड़ी से होती है तस्करी
गौ-वंश की तस्करी करने के लिए चोरी और किराए की गाड़ियों का इस्तेमाल होता है। तस्करी के दौरान यदि गाड़ी पकड़ में आती है, तो चोरी और किराए की होने के कारण सरगना तक पुलिस पहुंच नहीं पाती है। गाड़ी मालिक पुलिस के निशाने में होता है।
